कलम के आँसू
कलम के आँसू
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कलम के दर्द न कोई जाने
ना आँसू के मान हो।
स्याही बन के बह जाता
हर कागज़ के खलिहान हो।।
मन के बतीया मन ही न जाने
तब काहे के जान हो।
पल भर में ही टूट जाला
हर दिलवा के अरमान हो।।
रो रो के अब कहे कलम
ना दिल दिहा केहू के दान हो
केकरो बिन केहू के जीवन
बन जाला शमशान हो।।
आईल बंसत की ना आईल
ना हमके कुछउ भान हो
बिन कोयल इ दिल के बगीया
हो गईली सुनसान हो।।
