कली सिमट गई
कली सिमट गई


नैन हाला लब मिश्री है
जाम की सुगंध
गगरी चाँदनी की
मधुप सी मोगरे की कली
संदल सी महकी बहकी
रज गोधुली सी
बावरी बाला
प्यासी मिलन की पिहू की
हर दिल बसी
कौन इन पर ना मरे कहो
एक हल्की कंपकपी लिए
रूह की पाक पूर्णिमा सी
थोड़ी मौन है मुखर बड़ी
सवाल भी है
जवाब भी चंचल सी
गंभीर नाद सी दरिया सी
लगे कभी आग सी
हल्दी से नहाई
संगमरमर सी मरहमी
एक कोरी कुँवारी तनया
ओढ निकली है घूँघट रात का
छम छम सी पायल पैरन धरे
चुपचाप दहलीज़ लाँघते
ठिठुर गए पग एक सोच पर
बाबा की सूरत अँख धरे
नीर नैन पलकन भीग गए
कर बंध किवाड़ उर तले
सो गई सिमटकर गोद में
माँ बाप की लाज से लिपट कर।