कल सामने है
कल सामने है
कल से
सब कुछ बदल जाएगा
हम मधुमक्खीयों का छत्ता
बिखर जाएगा
न तिनका लगा है न पत्थर
न ही किसी ने हमला किया
अभी बगीचों में कलीयाँ भी
खतम नहीं हुईं
मधुओं से छत्ता भी हमने नहीं भरा
बिना किसी वजह के
हम अलग अलग उड़ेंगे कल से
हमारी इच्छा के विरुद्ध
अगर हमारे वश का होता
तो ये न हम होने देते
आँसू हमारे आँखों से
यूँ बरसने हम न देते
सोच सोच कर ही
दिल यों न बैठा जाता
पुरे के पुरे होस्टल में
मातम यों न छा जाता
आज हम संभलने को नाराज़ हैं
बिलख बिलख कर रोएंगे
न खाएंगे न पियेंगे
खुद से आज हम रुठेंगे
कठिन है इस पल को झेलना
जितना सरल है कह देना
के जैसे एक दिन कभी
हम यहाँ आये थे
वैसे ही कभी हम जाएंगे
और लो, वो पल
वो कल आज सामने है।
