क्षीण तन मन दुर्बल, अब काँटा बन चुका शरीर। चली जा रही हो वह ऐसे, चली हों लहरें जिसके क्षीण तन मन दुर्बल, अब काँटा बन चुका शरीर। चली जा रही हो वह ऐसे, चली हो...
बिलख बिलख कर रोएंगे न खाएंगे न पियेंगे खुद से आज हम रुठेंगे बिलख बिलख कर रोएंगे न खाएंगे न पियेंगे खुद से आज हम रुठेंगे