कल जो ना रहूं मैं
कल जो ना रहूं मैं
के ना रहूं मैं कल ग़र इस दुनिया में
तो घर के किसी कोने पर मेरी इक तस्वीर होगी,
जो कभी न गवारी होगी,
एक माला मात्र होगा , एक छोटे बक्से जैसी उस तस्वीर पर मेरे
पर यादें ढेर सारी होगी ।
हमारा लड़ना झगड़ना और साथ में हमारी हंसी
कई शैतानी याद आएगी ,
जो कुछ निराली कुछ अच्छी होगी ,
वो तस्वीर बेजान बेजुबान होगी जरूर
पर उस पर दिख रही मेरी वो मुस्कान सच्ची होगी ।
आवाज़ मेरी सुनी जाती है आज यहां
पर कल जब ना रहूं तो सुनने को मुझे
शायद तुम सब की कानें तरस जाएगी,
पढ़ लेना फिर लिखे पन्ने मेरे
खुद ही आवाज़ मेरी गुंज जाएगी ।
आने न देना आंसू आंखों में अपने
उस घड़ी फिर तुम मुस्का न पाओगी ,
केवल दिखाई ही न दे रही हूंगी
उस वक्त मैं ,
महसूस करना , हर समय मुझे अपने आस पास ही पाओगी ।
के शब्द तुम्हारा होगा , जुबानी मेरी होगी
लिखोगी चाहे कुछ भी कहानी मेरी होगी ।
जब भी बात लिखोगी अपनी पुस्तिका में मेरी ,
अगली सुबह जवाब अपना उसपे पाओगी,
और जब भी कोई नई पुस्तिका ला कर रखोगी ,
अक्सर मुझे कुछ लिखता पाओगी।
यूं तो झुठे वादे कर के न जाऊंगी मैं
के आऊंगी जरुर या नए रुप में
तुम सब के याद रख पाऊंगी ,
पर हां.................
कितना भी दूर हो जाऊंगी तुम सब से
अपनी परवाह और प्यार यहीं छोड़ जाऊंगी ।
इस नस्वर शरीर से जुडाव का मोह नहीं रखती मैं
तन से बिछुड़ भी ह्रदय से साथ रह जाऊंगी,
के इस कल्पना मात्र से ही
कलम और हाथ दोनों थमने से लगे हैं अब मेरे
इसलिए मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं लिख पाऊंगी।