कितने खयाल....
कितने खयाल....
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कितने खयाल एक साथ मिल कर चले आते हैं
मेरे जहन में भूचाल मचा कर,
मेरे दिल की जमीन को हिला कर यूं अदृश्य हो जाते हैं
मानो कुछ हुआ ही नहीं।फिर याद करने से भी याद नहीं आता कुछ,
और मैं खोई सी बैठी रह जाती हूं,कुछ भूला सा याद करने,
और कुछ आधा अधूरा सा भुला देने की जद्दोजहद में,
पर न तो कुछ पूर्णरूप से याद आता है,और ना ही पूरी तरह से भुलाया जाता है।
