कितना दुष्कर्म...
कितना दुष्कर्म...
कितना दुष्कर्म, कितना पाप भरा है
कहीं रोना ही रोना, कहीं संताप धरा है
इतनी ऊंचाइयों पर जाकर भी मेरे भारत
देख तेरे ही प्रांगण में, नारी का क्या हाल करा है।
कितना दुष्कर्म, कितना पाप भरा है।
जिस देश की नारी रानी लक्ष्मी बाई
जिस देश में बनती प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी
जिस देश में कल्पना अंतरिक्ष भ्रमण कारी
अपमानित हुआ है उसका आँगन देख किलकारी।
ले लो जन्म अब तो विश्व सर्जन करता है त्रिपुरारी।
कितना दुष्कर्म, कितना पाप भरा है
कहीं रोना ही रोना, कहीं संताप धरा है
रो रहा है अम्बर, सूरज, चाँद भी विलुप्त हुए
मन की गंगा भी मैली ये कैसी है जीवन शैली
खुद को दोष दे या हम रोज़ निकले ऐसे ही रैली
हर गली हर सड़क पे देखों, उम्मीद की निगाह है फैली।
अब तो दे दो सजा अपराधी को, भोले तुम जज बनकर।
कितना दुष्कर्म, कितना पाप भरा है
कहीं रोना ही रोना, कहीं संताप धरा है
