किसकी आ जाए बारी
किसकी आ जाए बारी
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थक के चूर वो
जब घर लौटी
खाली बर्तन
भूखे बच्चे
मैली पड़ी थी चौकी
सूखे होंठों पर मुस्कान
सी थी छाई
विशाल माथे पर एक
शिकन भी ना थी आई
यह बेचारी तो थी
तकदीर की ठुकराई
तकदीर के आगे तमन्नाएं
फीकी पड़ती है सारी
कौन जाने कब
"किसकी आ जाए बारी"
