किसान दुर्दशा
किसान दुर्दशा
हां.…..मैं किसान हूं
हां.....मैं किसान हूं
खेतों में बीज मैं बोता,
तभी तो अन्न पैदा होता
खेत का कण-कण मेरी जान,
इससे बढ़ता मेरा मान
कर में मैं हूं डूबा रहता,
कड़ी धूप शीतकाल मैं सहता
हाल मेरा रहता बेहाल,
फिर भी ना रोकूँ अपनी चाल
हां...नहीं हूं मैं धनवान,
बिलखती रहती मेरी संतान
दुनिया को लगता है जैसे,
मेरी स्थिति है अत्यंत महान
सरकार ने चलाए कई अभियान,
जिससे मिलता उनको सम्मान
फिर भी दशा मेरी है वैसी ही,
आज भी खोज रहा हूं अपना मान
खेतिहर, कृषिजीवी, हलवाह, किसान,
इन नामों से मेरी पहचान
भूमिपुत्र, हलदर, अन्नदाता,
कई नामों से मैं जाना जाता
मेरी मेहनत का फल मिले मुझे ,
इसकी बस मैं आशा रखता
सुखी रहें मेरा भी परिवार,
इसकी मैं तमन्ना करता
भरोसा उस मालिक पर मुझको,
मेरा भी दिन बदलेगा
हूं निराश कमजोर नहीं मैं,
मेरा आंगन भी खिलेगा
हां.....मैं किसान हूं
हां..... मैं किसान हूं।
