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Mayank Kumar 'Singh'

Others

5.0  

Mayank Kumar 'Singh'

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किस वक्त की बात कहूं

किस वक्त की बात कहूं

2 mins
311


किस वक्त की बात कहूँ

उस वक्त की जब मैं रोया था

या फिर खुद पर ही हँसा था


जिस वक्त मैं फागुन था

उसी वक्त मैं कार्तिक भी हुआ था

कुछ वक्त पहले तक घर में एक ही रसोईघर था

लेकिन, वक्त ने रसोईघर के टुकड़े किए

जिस दिन मेरे बंधु को एक लुगाई मिली,

उसके कुछ दिनों के बाद से ही बहुत कुछ हुआ

जहाँ दिल में एक गांव-सा खलिहान बसता था

उसी का टुकड़ा उसकी लुगाई ने करवाया था

हवा मोहब्बत की गुजरती थी जिस खलिहान से

वहां अब सरहदों का एक ठिकाना था

दीवार काफी ऊंची हो गई थी नफरतों की

जहां मोहब्बत की हवा अब जहरीला लगता था

बड़ी ऊंची दिवार बन गई थी सरहद पर

जिसको पार पाना बड़ा मुश्किल हो गया था

कुछ वक्त पहले कोशिश की थी

अम्मा ने उस पार जाने की ...

लेकिन, सरहद की दीवार को लाँघने से पहले ही,

काफी गोलाबारी प्रारंभ हो गई थी,

अम्मा रोती-बिलखती आई थी वहां से...!

किस वक्त की बात कहूँ

उस वक्त की जब मैं रोया था

या फिर खुद पर ही हँसा था


काफी समय हो गया हैं उस बात को बीते हुए

अम्मा भी दिल पर अब पत्थर रख ली है

ताकती भी नहीं सरहद के उन ऊंची दीवारों पर

जहाँ से कभी वह रोते-बिलखते आई थी

लेकिन क्यों ना जाने उस पार से अब,

अम्मा का याद उन्हें खूब आया करता हैं

अब वे सरहदों के दीवारों पे सीढ़ियों संग खड़े रहते हैं

अम्मा को देखते हैं, औऱ ख़ूब पुकारते हैं...

पर, अब अम्मा अपनी नजरों को फेर लेती है उनसे

क्योंकि सरहद के उस पार अब्बू रहते थे उनके संग

खलिहान के दो टुकड़े हुए जब, अब्बू उनके हिस्से में गए

उनसे मिलने के लिए अम्मा बेचैन रहा करती थी

अब्बू को मैंने काफी बुलाने की कोशिश की थी

पर न जाने वह किस उलझन में फंसे हुए थे

अम्मा उनके बिना पतझड़ के पौधे-सा हो गई थी

कुछ दिन पहले ही उस पार से खबर आई थी

अब्बू का इंतकाल हो गया था किसी बीमारी से

तभी से उस पार से वे अम्मा का इंतजार में हैं

अब सरकार ने अब्बू का पेंशन,

अम्मा को देना प्रारंभ कर दिया है..!

किस वक्त की बात कहूँ

उस वक्त की जब मैं रोया था

या फिर खुद पर ही हँसा था






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