कीचड़ से बदबू आते समय में
कीचड़ से बदबू आते समय में
धड़कनों की धक-धक
अब लिखेंगी
यादों की रूबाईयां
नेह की कोरणी से,
रचेंगी
गजल के मिसरे
तुम्हारे चेतन-अवचेतन के
कोरे पन्नों पर
विरह के हरफों में...
चाँद की छाती बने
आसमां की पाटी पर
घोटेंगी प्रीत के पहाड़े,
आँखों के जगराते में बजेंगे
तारों की गिनती के
परभाती नगाड़े !
तब सांझ ढले
अलसाती तुलसी-से निढाल
तुम्हारे विकल चेहरे के
किसी मरुअे पर
चटकेगी
कोई प्रेम कविता/
गोधूलि में
जंगल से लौटते पशुओं के
गले में बंधी घण्टियों की
रुन-झुन टंकार के साथ
तब निकलेगा कोई छंद,
पळसे-सी खुलती
आत्मीयता के साथ
तब निसृत होगी
भरी-पूरी कोई गजल....
समय के हलकारे
डर कर
तब देंगे दुहाई दोहों की
और गायेंगे गीत
तुम्हारी केसरिया प्रीत के
तब शायद
मन के किसी उपेक्षित
कोने में सुबकते
विगत वक्त की
शहनाई संग रचा जाए
जीवन का महाकाव्य
और कीचड़ से बदबू आते
समय में
खिल आए कोई कमल
तुम्हारी चाहत का
खुशबु आता-सा !
