खरीददारी
खरीददारी
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एक औरत हूँ मैं
एक औरत के एहसास
समझती हूँ।
जब भी उदास होता है दिल
कहीं घूमने को
निकलती हूँ।
अपना मन बहलाने का
एक अदना सा
बहाना है।
कुछ और ना सही
मुझे खरीदारी करने
जाना है।
खरीददारी करने जाती हूँ
क्या कुछ गुनाह
करती हूँ मैं।
सबकी नजरों में बस
पैसा बर्बाद
करती हूँ मैं।
फिजूलखर्ची तो औरत ने
सीखी ही
नहीं कभी।
संजो कर रखना घर
हमेशा का सपना
बस यही।
फिर क्यों औरत पर
सदा उँगली
उठाते हो।
अपनी खुशी के लिए
जीए अगर क्यों
दहक जाते हो।