ख़्याल मेरा," हमसफ़र ".
ख़्याल मेरा," हमसफ़र ".
जब शाम ढलती है,
एक तस्वीर उभरती है,
कहीं हैं करीब, एहसास कराता है
शायद मुझे ख़्याल आता हैI
जब कभी टटोलता हूँ, अँधेरे में,
अजनबी लगते हैं, ये हाथ मेरे,
फिर ठिठक, ठहर जाता है,
शायद मुझे ख़्याल आता है, I
दिले-जहन में मेरे, वो बसते हैं
सोए जज़्बात, बहुत मचलते हैं,
कई बार दर्द, उभर जाता है,
शायद, मुझे ख़्याल आता है I
यूँ तो हर रात, तन्हा गुजरती है ,
यादों में फिर, कहीं सिमटती हैं,
सुबह तकिया से, सीना टकराता है,
शायद, मुझे ख़्याल आता है I
कोई गिला, ना शिकायत ही हुई,
मोहब्बत ही थी, जो बाज़ार न हुई,
आईना भी आज देख, मुस्कराता है,
शायद मुझे ख़्याल आता है I
माफ़ करना गर, कोई थामे हम को,
गैर मौजूदगी में तेरी, संभाले हम को,
यूं तो हर साये से, दिल कतराता है,
शायद मुझे ख़्याल आता है I
दिन गुजरता है मेरा, डर-डर के,
सिया-रातों के, मंजर को ले के,
केवल खौंफ है, जो पसर जाता है,
शायद मुझे ख्याल आता है I
वक़्त चलता गया, उम्र ढलती रही,
सुनहरे बीते पल, कहीं सिमटते रहे,
अब अकेलापन, मेरे हमसफ़र खल जाता है
शायद मुझे ख़्याल आता है।