STORYMIRROR

Kiran Bala

Others

2  

Kiran Bala

Others

ख़्वाब जो बीत गया

ख़्वाब जो बीत गया

1 min
160

नफरत कहूँ या फिर अफसोस

हाल ए दिल बयाँ करती हूँ,

नफरत किसी और से नहीं

मैं अपने आप से करती हूँ।


अब तक जी है

जो दोहरी जिंदगी मैंने,

खामोशी के साए में लिये

अंगार फिरती हूँ।


अपनी ख्वाहिशों को, सपनों को

कुचल डाला इस कदर मैंने,

सबको खुश रखने की खातिर

हंसी चेहरे पे लिए फिरती हूँ।


रिश्ते समेटे हैं जो

आज इस कदर मैंने,

कड़वाहटों के भी दंश

जो झेले हैं मैंने,

अश्कों को छिपाकर न जाने

कितनी बार सिसकती हूँ।


अपने अस्तित्व को क्यों

इस तरह मिटा डाला है मैंने,

जमाने के हिसाब से क्यों

खुद को नहीं चलाया मैंने।


बस एक ही अफसोस आज

दिल में लिये में फिरती हूँ,

हाँ ,जो बुरा ख्वाब जिया है मैंने

नफरत उससे मैं आज करती हूँ।



Rate this content
Log in