खारे पानी की बारिश
खारे पानी की बारिश
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खारे पानी की बारिश ने
स्वाद जिव्हा का बदल दिया
शक्कर से भी मीठे थे हम
नमक के पानी में भिगो दिया
कहां मिन्नत थी हिम शिखरों की
कहां जमीन पर पटक दिया
कमसिन सी काया में
तीक्ष्ण तीरों को चुभो दिया
जन्नत से गिरी थी मीठी बारिश
आते -आते जमी पर खारी हो गई
अपने कर्मो कि बुरी परछाई
अच्छाई पर भारी पड़ गई
ना कोई अपना ना कोई पराया
सब पल दो पल के साथी
किससे करें गिला शिकवा
नहीं कोई जनम -जनम का साथी