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Kusum Joshi

Others

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Kusum Joshi

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कहां गए सब ढूंढ़ रहे

कहां गए सब ढूंढ़ रहे

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भ्रष्टाचार मिटाने आए थे जो कहां गए सब ढूंढ रहे,

राजनीति बदलने आए थे जो कहां गए सब ढूंढ रहे,

सब ढूंढ रहे वो वीर सिपाही सड़कों पर जो उतरे थे,

राजनीति बदलने आए थे जो कहां गए सब ढूंढ रहे।

भ्रष्टाचार मिटाने आए थे जो कहां गए सब ढूंढ रहे।।


क्या पराजित छल से हैं, या शामिल स्वयं छलों में हैं,

हार गए पाखंड से या स्वयं झूठ के पोषक हैं,

युवा पीढ़ी की आशाएं बन दिल्ली तक जो पहुँचे थे,

राजनीति नई जो लाए थे वो कहां गए सब ढूंढ रहे।

भ्रष्टाचार मिटाने आए थे जो कहां गए सब ढूंढ रहे।।


जो प्रश्न पूछते थे कल तक, अब स्वयं भागते प्रश्नों से,

भ्रष्टाचार से मिलकर लड़ते थे जो आज लड़ रहे अपनों से,

वाणी में हुंकार कभी थी चुप बैठे सब मौन हुए,

डरते थे जिनसे नेता और दल कहां गए सब ढूंढ रहे।

भ्रष्टाचार मिटाने आए थे जो कहां गए सब ढूंढ रहे।।


कहां गए व्यक्तित्व पुरोधा वादे बड़े बड़े से कर,

भटक गए क्या कहाँ चल दिए निकले थे छूने अम्बर,

जो नए उदाहरण की क्रांति का बिगुल बजाने आए थे,

बिगुल बजा क्या नही सुना तब कहां बजा सब ढूंढ रहे।

भ्रष्टाचार मिटाने आए थे जो कहां गए सब ढूंढ रहे।।


ठगे- ठगे से ढूंढ रहे सब चेहरों की सच्चाई को,

जो कभी दिखी थी उन सब में उस सुभाष की परछाई को,

जनता की आवाज़ को जो संसद तक पहुंचाने आए थे,

आवाज़ ही वो सब मौन हुई हैं कहां गयी सब ढूंढ रहे।

भ्रष्टाचार मिटाने आए थे जो कहां गए सब ढूंढ रहे।।



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