कभी
कभी
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कभी वो पास आते थे
मुनासिब साथ जाते थे
हसीं वक़्त औ मुस्कराते थे
खुशी पल ना गंवाते थे !
ज़मीं पे आशियाना था
कमी पे ये ठिकाना था
नमी आँखों की रहती तो
हमीं से सिर नवाते थे !
अजीबो दास्तां है ये
बताऊँ या छूपाऊँ क्यूँ
कभी फुरसत से बैठे तो
हमें फिर से सुनाते थे !
दिलो जां से कभी उनको
ना देखा था, ना चाहा था
खुदा की आरजू बस थी
यही मुझको बताते थे !!
