कभी रास्ते चलते -चलते
कभी रास्ते चलते -चलते
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कभी रास्ते चलते -चलते,
अच्छे लगने लगते हैं इतने।
नहीं पहुंचना चाहता मन मंज़िल तक,
क्योंकि वहाँ तो सफर खत्म हो जायेगा,
जो मीठी यादें है सफर की,
उनको वहाँ कैसे ढूंढ पायेगा।
वो सरसों की खुशबू,
वो इंजन का पानी,
वो गन्ने की महक,
पेड़ो का हिलना,
वो कोयल का गाना।
वो ठंडी हवा का छूकर गुज़र जाना,
वो तुम्हारा चिढ़ाना,
कभी रूठना कभी मनाना,
वो मस्ती भरी बातें।
वो रास्ता न जाने कैसे कट गया
यूँ ही बात करते करते
कब मंज़िल आई पता न चला

