कभी हम सक्रिय थे
कभी हम सक्रिय थे
हम जैसे पृथ्वी पर एक भूखण्ड
एक भूखण्ड जैसे भारत।
आस्था और विश्वास
हमारे नाम थे,
तृप्ति के संशाधन ही नहीं
मुक्ति के उपक्रम भी हमीं थे।
निकलता था हमारे अंदर से
सुख और शांति
आनन्द और खुशहाली।
मिलाया करते थे आंखें
अपने निर्माता परमात्मा से।
सुना होगा किस्सा आपने भी
परमात्मा से हमारे प्रेम का
करते हुये एक वायदा हमसे
दुबारा हमारे पास आने का।
आज भी हम हैं
ठीक ठीक वैसे ही
जैसे कि थे।
हाँ हम निष्क्रिय जरूर हैं
क्योंकि हमारी जरूरत नहीं है
और यूँ ही गुजर रहे हैं
डरावने और संशय के भावों से
झरते हुये शब्दों से रूबरू होते हुए
देखते हुये परमात्मा को
निभाते हुये हमसे किया हुआ
वही पुराना वायदा
हमारे पास आने का।