कब बरसोगे अंगना
कब बरसोगे अंगना
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सावन महीने में, बूंदों को तरसे है मन
कारी बदरिया न घिरे घन – घोर घन
कंगना न खनके, न पायल ही छनके
गाये पपीहा न, नाचे मयूर मन
दिखे न बदरा, सावन की ऋतु आई
चपला न चमके, है कैसी ये रुसवाई
उमड़ – घुमड़ बदरा लाई न पुरवाई
कब बरसोगे अंगना, मन लेत अंगड़ाई
बूंदों की रिमझिम को तरसे है ये मन
रूठे पिया जैसे रूठा है सावन
आओ रे बदरा भीगे ये तन मन
ठंडी फुहारों बिना कैसे मिटे अगन
सावन महीने में बूंदों को तरसे है मन।
