कौन हूँ मैं
कौन हूँ मैं


कौन हूँ मैं
एक अक्स,
प्रतिमा, या फिर
उस परमात्मा का अंश
जो भी हूँ
तेरी ही प्रतिलिपी हूँ
ईश्वर
न ज़्यादा न कम
हक़ीकत में
लाखों अवगुणों से पूर्ण हूँ
ज़िन्दगी के ज़ुनैद में
मैं तो सिर्फ देशी माटी का
चूर्ण हूँ
जो कहते हैं मुझे
झूठ की मूरत हो
उन्हें यह एहसास भी नहीं
मैं तो औरत हूँ
औरत एक बेटी, बहन
माँ, प्रेमिका य़ा पत्नी तो
होती है
पर जब अपनी मर्यादा
की सीमा लांघती है
तो वो सिर्फ एक गाली
होती है
अपनी संगिनी को
गाली देना
कपड़े में बेपर्दा
करने के समान है
संभल जाओ ऐ
पुरूष प्रधान समाज
औरत कोई खिलौना नहीं
वो है तेरे परिवार का सृजन