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Dinesh paliwal

Others

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कान्हा को पुकार

कान्हा को पुकार

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संभवामि युगे युगे,कह कर

वापस तो नहीं आये कान्हा,

इस कलयुग में शायद,सीखा,

वादा करके फिर न निभाना।।


फिर धरा पर पाप पोषित,

फिर हर तरफ बस कोहराम है,

दुर्जन को सब साधन यहाँ,

और सदजन को त्राहिमाम है।।


माँ देवकी सी कोख ढूंढें,

फिर धर्म का आह्वान हो,

नभ से उठे आकाशवाणी,

फिर आठवी संतान हो ।।


फिर कोई नन्हा सा बालक,

कंस से बली पर हो भारी ,

जिसकी बंसी की तानों में,

प्रेम सुधा बस हो प्यारी।।


इस कलियुग में भी कान्हा,

तुम पर एक कुरुक्षेत्र उधार है,

तुम बस मुख से गीता वाचो,

कितने अर्जुन तैयार हैं ।।


ये धरती पटती अब पापों से,

ये दिन रात यही भय खाय

कोई अबोध अभिमन्यु अब ,

ना,चक्रव्यूह की भेंट चढ़ जाए।।


धर्म संस्थापनार्थ ही तो तुम,

तब द्वापर में भी तो आये थे,

फिर मत भूलो उन वचनों को,

जो वसुधा के मन भाये थे ।।


धर्म ध्वजा झुकने ना पाए,

फिर गिरि को आज उठाना है,

परित्राणाय साधूनांम का वचन,

बस कान्हा जी आज निभाना है।।

बस कान्हा जी आज निभाना है।।




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