कामना शून्य
कामना शून्य
गीता में प्रभु ने अर्जुन को ,यह बार-बार है समझाया।
संकल्प कामना दुख की जड़ है, इसने मानव को भटकाया।।
कामना सदा दुख की जननी ,यह कभी तृप्त ना होती है।
गर इच्छित वस्तु मिल जाए ,यह नया स्वप्न गढ़ लेती है।।
कितने भी तुम ग्रंथ पढ़ो, इससे पीछा ना छूटेगा।
कामना सदा मन में होगी, बस विषयों का परिवर्तन होगा।।
यह कामना सभी पर हावी है, वह गृहस्थ हो या सन्यासी।
एक चाहता धन वैभव, एक है मोक्ष का अभिलाषी।।
कैसे त्राण मिले इससे मन में यह ख्याल पनपता है।
ज्ञानी संत उपाय बताते ,जो निश्चित ही फल देता है।।
सादर गुरु से ज्ञान गहो, तभी कामना दग्ध होगी।
जागेगा आत्मज्ञान तुम में, गुरुवर की दया दृष्टि होगी।।
गुरु चरणों में रत साधक ,जब आत्मबोध को पाता है।
फिर शेष नहीं कामना कोई सब संकल्प क्षीण हो जाता है।।
ममता आसक्ति दंभ नहीं ,ना बंधन व्यापे कर्मों का।
सब कुछ ठहर जाता भीतर, दर्शन घट जाता परमेश्वर का।।