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JAI GARG

Others

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काग़ज़ी-शेर

काग़ज़ी-शेर

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यादें हैं बीते दिन की

अख़बार से जुड़ते अरमान

मोड़ते सिकुड़ते सपने, और

दौड़ लगाती कश्तियाँ


फिर, कुछ प्यार भरे एहसास

नज़रों से रिझाना देखा है

क्यो बंदिशों से परे, हवा में

अठखेलियाँ करती, खोती ख्वाहिशें


एक दौर ऐसा भी था

भावनाओं मे बहकर 

शब्दों के भँवर मे फँस कर

स्याही बिखरी थी हमने


अनगिनत, अनकही कविताएँ होगी,

सिसकते काग़ज़ के फूलों की तरह!


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