जरूरतों से बनता बाजार
जरूरतों से बनता बाजार
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बाज़ार का वजूद क्या है?
हमारी जरूरतों भर का
हमारी जरूरतों के साथ
बाज़ार भी बढ़ता गया
चकाचौंध मन देखता है
इजाजत जेब देती है,
मन काबू में नहीं तो
किसी जेब को उधार देखता है।
यहां सब कुछ बिकता है
खासकर वो जो दिखता है
ये बाजार हमने ही बनाया है
हम ही को आंख दिखाता है।
दुनिया के साथ चलना पड़ता है
नहीं तो इस बाजार की
इतनी हिम्मत कहां कि
हमारी इच्छाओं को खरीद सके।
जहां चलो, बाजार आपके साथ
तो जब थोड़ा मजबूत रखिए जेब
क्या पता मन कहां पर उछाल मारे
और फिर बाजार तो सदा ही
आपके आस पास ही है।