हमारी जरूरतों के साथ बाज़ार भी बढ़ता गया हमारी जरूरतों के साथ बाज़ार भी बढ़ता गया
कहने को तो मुट्ठीभर ही, रिश्ते थे दामन में पर कहाँ दुनियादारी के ये, कायदे संभलते हैं। कहने को तो मुट्ठीभर ही, रिश्ते थे दामन में पर कहाँ दुनियादारी के ये, कायदे सं...