रोज़ सूरत बदल के मिलता है। तुझ पे कितने नक़ाब हैं भाई। रोज़ सूरत बदल के मिलता है। तुझ पे कितने नक़ाब हैं भाई।
कहने को तो मुट्ठीभर ही, रिश्ते थे दामन में पर कहाँ दुनियादारी के ये, कायदे संभलते हैं। कहने को तो मुट्ठीभर ही, रिश्ते थे दामन में पर कहाँ दुनियादारी के ये, कायदे सं...