ग़ज़ल
ग़ज़ल
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इश्क़ में वो अज़ाब हैं भाई।
दर्दो -ग़म बे हिसाब हैं भाई।
जिस्म कहिये के जैसे मैख़ाना।
और आँखें शराब हैं भाई।
रोज़ सूरत बदल के मिलता है।
तुझ पे कितने नक़ाब हैं भाई।
अब तो सठिया गए हैं हम जानम।
पुर्ज़ा पुर्ज़ा किताब हैं भाई।
चाय पानी भी अब उधारी में।
ये कहाँ के नवाब हैं भाई।
झूठ मक्कारियाँ ओ बद चलनी।
हम पे कब ये ख़िताब हैं भाई।
हो हमारा कोई ,किसी के हम।
कुछ हमारे भी ख़्वाब हैं भाई।