जिंदगी
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कल मैं अपनी मंजिल की और बढ़ रही थी,
बीच में मुझे जिंदगी ने पुकारा,
मैं ने उसे खोजा लेकिन,
वो मेरे साथ लुका छिपि खेल रही थी,
में थककर आगे बढ़ी लेकिन मेंने अपने आगे देखा,
वो मेरी परछाई बनकर चल रही थी,
मैं उसके पास गई और आखिरकार,
मैंने उसे पूछ ही लिया,
कि तुमने मुझे इतनी ठोकरें क्यों दी?
वो अपनी दिलकश मुस्कुराहट के साथ बोली,
अरे,पागल जिंदगी हूं मैं तुम्हें गिरकर खड़ा होना सिखा रही थी ।