जीवन
जीवन
जीवन के फलसफे को कहता कौन है
उलझे सवालों के जवाब देता कौन है
सवाल भी अब मैं यहां किससे करूँ
इनायत बस ख़ुदा की ही मुझ पर है
उसकी इबादत करना ही मेरा कर्म है
बाकी तो यहां मेरी सुनता ही कौन है
कुछ जश्न दर्द के दरमियान भूलूँ
कुछ घटनाओं को लड़ी में पिरोऊँ
कुछ ज्यादा भी नहीं है यहां ग़म
माला की मोतियाँ ही है सब हम
बहते है यहां सब इक धारा बनकर
चलते है यहां सब अपनी ही कहकर
कुछ सुनाते है खूबसूरत कहानियां
दिल मे बसाते अपनो की निशानियां
मैं भी तो इसका एक आंशिक हिस्सा हूं
नहीं भूलोगे कभी तुम मैं वो किस्सा हूँ
कभी किस्से जीवन के सुना देता हूं
कभी ताने अपनों से खुद सुन लेता हूं
ना पिलाता कभी वाणी का गरल मैं
बस शब्दों का अमृत पिला देता हूं।।