जीवन पथ
जीवन पथ
स्वयं को तलाशता, स्वयं ही से भागता
इस अंजान पथ में, अपनों को निहारता
अपनी मजबूरियों से पार पाने को,
वक़्त के पहिये को उल्टा घुमाने को,
कर्तव्य पथ से भागता हूँ,
स्वयं को मैं धिक्कारता हूँ।
अनगिनत आशाओं के दीपक हैं बुझाए,
ममता के उन आसुओं को भी मैंने भुलाये,
इस जगत को जान जाने को,
स्वयं की पहचान पाने को
कर्तव्य पथ से भागता हूँ,
स्वयं को मैं त्यागता हूँ।
हे! ईश्वर तेरे अमृत का पान करके,
नहीं लेना अमरदान मुझको।
तू मुझको विष ही पिला दे,
इस जन्म-मरण से मुझको बचा ले,
बस इतना सम्मान पाने को
वापस तुझी में समा जाने को
कर्तव्य पथ से भागता हूँ
तेरी दया मैं मांगता हूँ।।
