जीवन चक्र
जीवन चक्र
वक्त के साथ
जिंदगी चलती है,
फ़िसल सी जाती है
हम बेखबर
मुसीबतें आ ही जाती हैं।
नाम ही जिंदगी का
कशमकश है,
या कहें तो एक
उलझन है ये जीवन,
हम हल करने
में ही हमेशा रहते,
जीवन के प्रश्नों को।
उत्तर दे पाते हैं कभी
यूँ ही मायूस हो जाते कभी,
जब प्रश्नों के
चक्रव्यूह में निकल नहीं
पाते हैं।
इसी असमंजस में
जीवन चक्र
चलता रहता है,
एक समस्या हल होती नहीं
हमें तैयार खड़ी मिलती है दूसरी,
साथ रहती है साथ चलती है हर पल
सच कहें तो जीवन की तकलीफें
सुलझती ही नहीं कभी।
इन उलझनों को हल करने में
हम और भी त्रस्त हो जाते हैं
तकलीफें हमें उलझाती हैं
हमारे मन को भर्मित करती हैं
इधर उधर जंजाल सी उलझी हो
हम पाने को एक अदद
मंजिल मन से लगे सदा
रहते हैं किनारे की खोज में
दिखती रहती हैं वो
सदा एक मृग मरीचिका सी।
