जब से वो कवि बना
जब से वो कवि बना
वो जब से कवि बना,
रोज नई कविताएं गढ़ने लगा,
कभी हालातों पर कभी जज़्बातों पर,
प्रेम मुलाकातों और दर्द के अहसाओं पर,
अपनी लेखनी से कविताओं को रूप देने लगा,
वो शब्दों का हेर फेर करने लगा।
जीवन की खट्टी मीठी अनुभूतियों का,
थमे सहमे हुए रास्तों का,
मन की वेदना का,
पलकों में ठहरे आंसूओं का,
उतार चढ़ाव वो लिखने लगा,
नित नए किस्से गढ़ने लगा,
वो जब से कवि बना।
कभी गहरे सागर में मोतियां पाने,
कभी पंख लगा आसमान को छूने,
वो कभी मन में उतरने,
तो कभी कल्पनाओं में उड़ने लगा,
नित नए रूप नए स्वांग रचना लगा,
वो जब से कवि बना।
उसने अपनी कविताओं में सीख तो लिया है,
जीवन के उतार चढ़ावों को,
अपने हिसाब से रचने, गढ़ने,
जहां चाहा इधर उधर मोड़ने,
पर वो भूल गया इंतजार उन आंखों का,
वो दर्द चुभन उन कांटों का,
जो उसने अपनी लेखनी से जिंदगी भर के लिए,
उसे दिया,
उस अहसास को खुद कभी ना वो जी पाएगा,
वो कवि जरूर बन गया,
पर जिंदगी के हलाहाल को पी ना पाएगा।
