जब हम बच्चे थे
जब हम बच्चे थे
जो ख़्वाब थे, सच्चे थे,
जैसे थे, अच्छे थे,
जो ख़्वाब थे, सच्चे थे।
माना हम बच्चे थे,
पर मन के सच्चे थे,
शरारतें लाख कर रक्खे थे,
शैतानियों में भी पक्के थे,
मन-मुटाव न रक्खे थे,
क्योंकि हम बच्चे थे,
जो ख़्वाब थे, सच्चे थे,
जैसे थे, अच्छे थे।
हज़ार ख़्याल सजा रक्खे थे,
हज़ार ख़्वाब बना रक्खे थे,
कभी अदाकार बन रक्खे थे,
कभी कलाकार बन रक्खे थे,
कभी सूट डॉक्टर की होती,
कभी फ़ौजदार बन रक्खे थे,
हम तन-मन के भी पक्के थे,
क्योंकि हम बच्चे थे,
जो ख़्वाब थे, सच्चे थे,
जैसे थे, अच्छे थे।
अब ख़्वाब कहां होता है,
जब तन कम सोता है,
अपनी फ़िक्र नहीं होती,
मन दुविधाओं में खोता है,
अब कौन वैसे खुश होता है,
जैसे तब होते थे,
जब हम बच्चे थे,
जो ख़्वाब थे, सच्चे थे,
जैसे थे, अच्छे थे।
