इश्क और समाज
इश्क और समाज
इश्क से ना पूछो उसकी जात ,
ना इसका कोई मजहब है
ना कोई समाज!!
इश्क है अंधा इश्क है बहरा
नहीं सुनेगा किसी की बात
सच्चा इश्क जिस्मों से ऊपर
दामन पाक रखे सदा ये
सच्चे इश्क के चर्चे हो आम!!
इश्क है कान्हा इश्क है राधा
इश्क है शीरी और फरहाद
इश्क में है गजब की ताकत
टकरा जाए हर तूफ़ान से!!
ऊंच नीच का भेद ना जाने
ना पैसों की हो दीवार
इश्क का मजहब सबसे ऊपर
क्या समझेगा ये समाज!!
इश्क जब हद से गुजर जाये
तो जूनून बन जाए
जब रूह में उतर जाए तो
भगवान बन जाए!!
समाज भी कभी झुक जाए
इश्क की ताकत के आगे
तो कभी जल्लाद बन
सजाये मौत भी सुना दे!!
इश्क और समाज कभी
एकसाथ हो नहीं सकते
ये फासले हैं सदियों के
ये कभी पट नहीं सकते!!
जब इश्क बन जाए लैला
मजनू बने समाज
दोनों फिर गले मिले
और बदल जाये इतिहास
आओ मिलकर ये खाई भी पाट दें
इश्क को समाज के गले से लगा दे!!
