इंसान
इंसान
इंसान की गली में इंसान बिक रहा है
जिस्म बिक रहा है और जान बिक रहा है
दुश्वारियों की बंदिशों में हो गया जमाना है
नफरतों की गलियों में अब तो आना जाना है
वफा की राहों में दुश्वारियाँ भी कुछ कम ना
जहाँ मान बिक रहा है सम्मान बिक रहा है
है प्यार भी ये झूठा इज़हार भी ये झूठा
करते जो सब है सेवा सत्कार भी ये झूठा
है स्वार्थी की महफ़िल सब नफरतों कि
गलियों में
जहाँ बिक रही जमी है आसमान बिक रहा है
नफरत कि आती बू है अब इन हवाओं में भी
कुछ शक सा हो रहा है तेरी फिजाओं में भी
कुछ भी न कहो मुझसे सब यार जानता हूँ
जहाँ मौत का सब साजो सामान बिक रहा है
क्या खूब है सजाया इंसान की महफ़िल को
महफ़िल में उसी देखो अरमान बिक रहा है
ईमान कि महफ़िल में शिवम ना कोई दुश्वारी हो
बुत के शहर में देखो भगवान बिक रहा है
है स्वर्ग सा सरीखा ये अब जहान बिक रहा है !!