STORYMIRROR

Jyoti Agnihotri

Others

3  

Jyoti Agnihotri

Others

इन्सान

इन्सान

1 min
141

खुद ही में मैं दो इन्सान लिए फिरता हूँ।

अपने ही आपसे मैं

जूझता हुआ फिरता हूँ।


जीतने की उससे है ख़्वाहिश नहीं,

कि मैं तो उससे हारने

का अरमान लिए फिरता हूँ।

खुद ही में मैं दो इन्सान लिए फिरता हूँ।


मेरी ही शख़्सियत टकराती रही है

हज़ारों बार मुझसे कि क्यों

दाल-रोटी की जंग में मैं उसे

हमेशा ही से दबाए फिरता हूँ।


न जाने क्यों हर घड़ी

मैं अपनी ही शख़्सियत से

उलझता फिरता हूँ।


अपने ही बाल मन की

स्वछन्दता-सौम्यता-चंचलता

को ख़ुद ही कि संज़ीदगी के

नक़ाब में छिपाए फिरता हूँ।

खुद ही में मैं दो इन्सान लिए फिरता हूँ।


ज़िन्दगी में सब हासिल नहीं,

मैं स्वयं को प्रतिपल यही,

समझाए फिरता हूँ।


शायद सब हासिल हो जाना

ठीक भी नहीं अपने बाल मन को

इसी बहाने से बहलाये फिरता हूँ।

खुद ही में मैं दो इन्सान लिए फिरता हूँ।



Rate this content
Log in