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shiv pandey

Others

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shiv pandey

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इक आस

इक आस

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हो मुझमे तुम इक आस बनकर

कैसे कहूँ रहने लगे हो ख़ास बनकर 


जब भी लगता मर सा गया अंदर से कुछ

जी उठती हो मुझमें तुम हसीं साँस बनकर


ये गुलाब ये इजहार ए इश्क नहीं कर सकता यार

मगर समझो जी नहीं सकता तिरा काश बनकर


तुझसे दूरी भी कयामत है ये हिज्र ए लम्हें जियूँ गर

तो अजाब रंज पी रह जाऊँगा फ़क़त उदास बनकर


शिव तुम फूजूल ही मलाल करते हो ये सब पर

अरे यार जिंदा है यहाँ पे हर कोई लाश बनकर।


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