इच्छा
इच्छा
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अकेला खड़ा ठूंठ
जिसे छोड़ा गया है
इस उम्मीद से
यह फिर हरा-भरा होगा
इस पर नये
पत्ते लगेंगे
फल आएंगे
छाँव तले
विश्राम लेंगे
थके-मांदे लोग
आश्रय स्थल होंगी
अनगिनत जीवों की
इनकी फैली भुजायें।
पर ठूंठ सोचता है
देखता है
अपने चारों ओर
केवल मैदान
कोई संगी-साथी नहीं
अकेला खड़ा वो
उम्मीद उसकी टूटती है
इच्छा नहीं उसे अब
फिर से
हरा भरा हो जाने की
किसी के
भूख-थकान मिटा
बन आश्रयदाता
हो महान जग में
पूज्य कहलाने की।
अपने साथियों की तरह
उसे भी कट जाना है
दूसरों के स्वार्थों के हित
स्वयं ही मिट जाना है।
