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pawan punyanand

Others

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pawan punyanand

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इच्छा

इच्छा

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अकेला खड़ा ठूंठ

जिसे छोड़ा गया है

इस उम्मीद से

यह फिर हरा-भरा होगा

इस पर नये 

पत्ते लगेंगे 

फल आएंगे 

छाँव तले 

विश्राम लेंगे

थके-मांदे लोग

आश्रय स्थल होंगी 

अनगिनत जीवों की

इनकी फैली भुजायें।


पर ठूंठ सोचता है

देखता है

अपने चारों ओर

केवल मैदान

कोई संगी-साथी नहीं

अकेला खड़ा वो

उम्मीद उसकी टूटती है 

इच्छा नहीं उसे अब

फिर से 

हरा भरा हो जाने की

किसी के

भूख-थकान मिटा

बन आश्रयदाता 

हो महान जग में

पूज्य कहलाने की।

अपने साथियों की तरह 

उसे भी कट जाना है

दूसरों के स्वार्थों के हित

स्वयं ही मिट जाना है।



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