हरयाली से विराना
हरयाली से विराना
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जब चारों ओर विराना था
फिर भी फिज़ा में गूंज रहा
एक मधूर तराना था
मेरा मन भी भाव विभोर था
और कुछ दूरी पे मगन हो
झूम रहा एक मोर था
जैसे बरसात को पुकार रहा
उसके प्यासे मन का शोर था
पर गगन तो मौसम और
इन्सान की प्रवृत्ति से मज़बूर था
जो हर पल बेरहमी से भेद रहा
हरयाली की गोद था