Pushp Lata Sharma
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मोहन खेलत फाग सखी वृषभानु लली शर्माय रही।
रंग अबीर गुलाल उड़े नभ प्रेम छटा हर्षाय रही।
ढोल बजा हुड़दंग मचा कर छोड़ सखी इतराय रही।
त्याग दई सब लाज लिये पिचकार समीम समाय गयी।
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