हनुमान जयंती!
हनुमान जयंती!
तेरा क्रोध है जैसे ब्रम्हास्त्र का बाण,
तेरी बोली में निकले श्री राम का गुणगान
कलयुग में तू एकमात्र है साक्षात् विराजमान,
जुड़ी है तेरी गरिमा से हमारा मान और सम्मान।
हर युग का प्रारम्भ और अंत तुमने है देखा,
जीवन का मूल मंत्र हमने तुमसे ही तो सीखा
शास्त्रों में तुम्हारे पराक्रम के बारे में खूब है लिखा,
तेरे चरण कँवल में दिखे हमे ये सारा जग अनोखा।
जन्म और मृत्यु के बीच के कड़ी में ये जीवन समाया,
मन मंदिर में तेरी प्रतिमा को है बसाया
अँधेरी गलियों ने खूब हमें रिझाया,
तेरी भक्ति ने न पड़ने दी कभी हमपे उसकी छाया।
असुरो और दानवों का जैसे किया आपने संहार,
आज अज्ञानी और दुष्कर्मियों को कर दो जरा सा समझदार
मजबूर और बेबस जिंदगी का लगा दो बेड़ा पार,
करलो इस छोटे से भक़्त की विनती स्वीकार।
दोस्तों, जिसके मुख पे हो सूर्य का तेज़ प्रताप,
ज़िन्दगी भर करेंगे हम बजरंग बली का जाप।