हम हत्यारे भोली मुस्कानों के
हम हत्यारे भोली मुस्कानों के
बचपन नाकाम ही रहा
जोत जो दिया तुमने अपनी गृहस्थी में।
झंडा,खिलौने,गेंद,गुब्बारे,पोंछा हाथों में पकड़े,
बचपन बेच रहा है बचपन,
आलीशान घरों के बच्चों को।
एक को ख़रीद कर अपार ख़ुशी मिलती है
एक को उनको बेच कर,,,
बेचने वाला इनसे खेलता नहीं,
टूटने ,फूटने,फटने के डर से।
ख़रीदने वाला पल में तोड़-फोड़ सकता है
क्योंकि वो फिर -फिर उसे ख़रीद सकता है।
बेचने वाले को सहेजना पड़ता है उसे,
वरना माँ बाप की फटकार पड़ जाएगी।
अपने हाथों में पकड़े खिलौनों को
बड़ी हसरत से देखता है वो
पर खेलता नहीं,,
उसके तो दिल में प्रार्थना है कि
बिकें ये सब खिलौने तो
वह पैसे दे सके अपने माँ -बाप को।
और बचपन उस पल ज़िम्मेदार बन जाता है,
और हम बन जाते हैं गुनाहगार
मासूम मुस्कानों के।
इनके बचपन की हमने ही हत्या की है,
हम हत्यारे हैं भोली मुस्कानों के,,,,
