हम बच्चे
हम बच्चे
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बचपन की भी अपनी मस्ती थी
हर चीज़ खेल के आगे सस्ती थी।
कितना भोलापन था उन शरारतो में
हर दम रहते थे हवा के हाथों में
वो खट्टी इमली का स्वाद भी बड़ा अनोखा था
एक दूसरे के टिफ़िन का स्वाद भी अलग था
या यूँ कहे की बचपन भेदभाव से परे था
झूठ या सच का तानाबाना क्या था
कुछ नहीं जानता था बस केवल
एक ही धर्म था और वो था कि
कैसे अपनी ज़िद पूरी करवानी है
कैसे माँ को मनाना है बस एक बार
माँ गर मान गयी तो पापा को खुद मना लेगी
सच श्वेता बचपन कितना बेफिक्र। था।