हिसाब
हिसाब
ऊपर वाले ने भी आँसुओं का सैलाब बहाया होगा
जब उसकी संरचना का हिसाब गड़बड़ाया होगा
चौरासी लाख योनियों के आवागमन के फेर में
महामानव बनाने का दबाव उसे कितना सताया होगा।
लिख लेते हैं लोग दूसरों का नसीब भी अपने नाम
भुनाकर उनके नेक कर्म, पा जाते हैं बड़े-बड़े ईनाम
जमीर के सौदागर, कौड़ियों में बेच जाते हैं अपना ईमान
रहबरों की बस्ती में, नापाक इरादों वालों की हैं सबसे ऊँची दुकान।
भुला कर उसकी मेहरबानियाँ, इस घरोंदे को अपना बता देते हैं
राह चलते को मार कर ठोकर खुद को सर्वसर्वा जता देते हैं
मनसा-वाचा-कर्मणा की डगर पर, उस सर्वशक्तिमान को ही चेता देते हैं
मसान पर के मुहाने पर खड़े इंसान इस देह को अपने घर का पता देते हैं।
