हिफ़ाज़त
हिफ़ाज़त
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हाथों में बंदूक़ और निगाहों में दुश्मन रखता हूँ।
शेरों का जिगर और फ़ौलाद का बदन रखता हूँ।
न जीने की फ़िक्र और न मरने का ख़ौफ़ है मुझे,
हमेशा वर्दी को बना के अपना कफ़न रखता हूँ।
लूट ले कोई अस्मत, ये होगा नहीं मेरे होते हुए,
मैं अपनी जाँ गवाँकर महफ़ूज़ वतन रखता हूँ।
गुज़ारी है मैंने आधी उम्र सरहदों की चौकसी में,
हर ख़तरे, हर तूफ़ान से लड़ने का फ़न रखता हूँ।
'तनहा' मर जाऊँगा अपने वतन की हिफ़ाज़त में,
हो कोई मौसम मुस्तैद अपना तन-मन रखता हूँ।