हे कृष्ण गोविंद माधव मुरारी
हे कृष्ण गोविंद माधव मुरारी
हे कृष्ण गोविंद माधव मुरारी शरण तुम्हारी में आ रहे हैं।
भटक रहे हैं दुखों से बोझिल गमों के बादल सता रहे हैं।
सहारे दुनिया के झूठ निकले प्रीत सभी की लगी दिखावा।
बुरा ही बोया बुरा ही काटा सभी से करते नरहे छलावा।
समय बुढ़ापे का जो आ गया है अब बैठे आंसू बहा रहे हैं
हे कृष्ण गोविंद माधव मुरारी शरण तुम्हारी में आ रहे हैं।
हजारों अवगुण के साथ भी जो तुम्हारे दर पर कोई आया
सब दुर्गुणों को मिटा के तुमने लोहे से सोना उन्हें बनाया
भक्ति के दीपक जला के दिल में नए उजाले दिखा रहे हैं।
हे कृष्ण गोविंद माधव मुरारी शरण तुम्हारी में आ रहे हैं।