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Simpy Aggarwal

Others

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Simpy Aggarwal

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"गुरु-शिष्य का रिश्ता"

"गुरु-शिष्य का रिश्ता"

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फुलवारी-सा बालक मन,

उसमे बन जड़ शिक्षक का संगम...

पानी और माटी सा है,

गुरु शिष्य का बंधन!

बिन पानी न माटी की कहानी,

बिन माटी न फुलवारी खिलखिलानी!

कच्ची-सी मिटटी है छात्र,

जिसको समेटे गुरु नामक पात्र!

डाल उस मिट्टी में पानी,

स्याही भरी लिख देते कहानी!


शिक्षक ही है शिल्पकार भी,

साँचा भी वो खुद ही बनते...

दे आकार सपनों को हमारे,

हमारा भविष्य भी वो ही गढ़ते!


कोरे कागज़ जैसे दिल पर,

अमिट अल्फ़ाज़ों से ज्ञान भरा...

कर माफ़ पल-पल हमे,

वही निभाते रहे, गुरु शिक्षक परंपरा!

हम छात्र कभी न जानें,

कैसे बनाई उन्होंने हमारे तक़दीर की रेखा...

सवांरने को जीवन हमारा,

उन्होंने पल-पल स्वयं को है सेका!


माँ पापा होते है घर में,

होते है हमारे पालनहार,

पहला कदम जो है घर के बाहर...

वहाँ, गुरु ही है दूजा परिवार!

हमारा हौंसला बेशक़ गिरा,

पर उन्होंने कभी न मानी हार...

अनेक विषयों के साथ साथ,

पढ़ाया हमे, सभ्यता और संस्कार!


पहचान बेशक़ है हमें बनानी,

पर पहचान को जो पहचाना हमने,

सब रही गुरुओं की मेहरबानी!


होता नहीं है कोई एक दिन सीमित,

करने को उन्हें समर्पित...

फिर भी आज एक कोशिश की है,

करने को उन्हें कुछ भाव अर्पित!


शिक्षक दिवस की उन्हें हार्दिक शुभकामना,

जो हुई हो कुछ भूल हमसे,

नादान समझ हमे क्षमा करना...

गर्व से हो ऊँचा शीश उनका,

काश दे पाउ कभी उन्हें मैं...

सही मायनों में उनकी गुरुदक्षिणा!



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