"गुफ्तगु फूलो की"
"गुफ्तगु फूलो की"


फूलो की अंजुमन में
ये तसकीरा है आज,
फिर से बहार आई है।
अहले चमन के बाद।
फूलो की अंजुमन मन में
सालों गुजर-गये, सालों गुजर गए,
जिसका इंतज़ार करके,
वो रंगे खुमार, लायी है,
उन हसरतों के गुज़र जाने के बाद।
फूलों की अंजुमन में
तरस-तरस के रह गयी निगाहें उनकी,
देखने को खुशनुमा सवेरा भी,
अब जाके धूप निकली ऐसी
उनके ग़ुबार मे छुप जानें के बाद।
फूलों की अंजुमन में
लम्हा-ए- इंतज़ार,
भी एक दर्द से कम नहीं।
एक उम्र गुज़र जाती है,
एक उम्र गुज़र जाती है
फलसफाये ज़िन्दगी के,
गुज़र जाने के बाद
फूलों की अंजुमन में
ये तसकीरा है आज
फिर से बहार आयी हैं,
अहले चमन के बाद।