गुलदस्ता
गुलदस्ता
1 min
473
गुलदस्ते सा मेरा देश
गुँथे जिसमे विविध हैं वेश।
फूल उत्तर का तो
कलियां दक्षिण वाली हैं।
कोई कत्थक पे थिरके
तो बिहू चाल मतवाली है।
कुचिपुड़ी ने मन को मोहा
भरतनाट्यम शोभा न्यारी है।
लोक नृत्य की छटा निराली
कर्मा ,सुआ,पंथी देख आली है।
आदिवासियों की टोली तो
लगती सब पे भारी है।
ऐसे अनोखे गुलदस्ते पे
सारी दुनिया वारी है।
